-एनडीएफएस डेस्क
प्रतिरोध जितना ज़रुरी है, उसकी निरंतरता भी उतनी ही ज़रुरी है। मौजूद दौर में इसकी ज़रुरत और भी बढ़ गयी है। सिनेमा इसके लिए कितना प्रासंगिक और कितना सशक्त माध्यम हो सकता है 'प्रतिरोध का सिनेमा' आयोजन इस बात की मज़बूत मिसाल है।
दरअसल हम ऐसे दौर में रह रहे हैं जब आसपास की गतिविधियां और आयोजन न सिर्फ सारहीन, तत्वहीन और निरर्थक प्रतीत होते हैं, बल्कि थोड़ा पड़ताल करने पर मार्केटिंग और पीआर इवेंट साबित होते हैं। ऐसे में 'गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल' से शुरु हुआ 'प्रतिरोध का सिनेमा' कैंपेन एक भरोसा देता है, ढांढस बंधाता है और हिम्मत न हारने की हिम्मत देता है। कोशिश कहीं भी हो, किसी भी रुप में हो... होती ज़रुर रहनी चाहिए।
इस सिनेमा आंदोलन ने आम शहरी मध्य वर्ग को सिनेमा के जनवादी स्वरुप से न सिर्फ परिचित कराया है, बल्कि उसकी सार्थकता का भी अहसास दिलाया है। इस बार 'गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल' का आयोजन 14 और 15 मई को हो रहा है। हर वर्ष मार्च के महीने में होने वाला ये आयोजन इस बार थोड़ा सा लेट हो गया है, लेकिन ग़ौर करने वाली बात ये है कि पूरा आयोजन हमारे और आपके निजी सहयोग से होता है, किसी कॉर्पोरेट स्पॉन्सरशिप या सरकारी ऐड से नहीं।*
सिनेमा में गहरे डूबे दर्शक हों या उत्साही आम मध्यमवर्गीय जन, हर बार इस आयोजन में ऐसा कुछ नया मिलता है, जो इसे यादगार बना देता है। गोरखपुर वालों के साथ साथ शहर के आसपास और दूरदराज इलाकों में रहने वालों के लिए भी ये आयोजन एक अमल बन चुका है, और वो हर साल बेसब्री से इसका इंतज़ार करते हैं। एक नज़र इस साल के शिड्यूल पर।
* अगर आप प्रतिरोध का सिनेमा: गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल को आर्थिक मदद देना चाहते हैं तो साइड पैनल पर लगा विवरण पढ़ें।
साभार: संजय जोशी, मनोज सिंह
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