Fusion of entertainment and being socially relevant with
sensibility is undoubtedly very sensible genre of cinema for a society/country
like ours, but at the same time it’s very challenging too. Vishal Bhardwaj’s
latest flick qualifies for the same genre, but people are finding it to be a
miss. Here is how a young viewer looks at the movie. Read what Vinay Singh thinks about the movie, Vinay is a
young television journalist and has just started his career.
मटरू की बिजली का मंडोला: फ़िल्म को देखने के बाद मेरा मूड तो
ज़रा भी नहीं था इस पर कुछ लिखकर अपना समय व्यर्थ करने का मगर मेरे एक मित्र के
कहने पर मैंने सोचा कि कुछ लिखना तो बनता है।
अपनी ज़िन्दगी में हम सब कभी किसी एक
किरदार में नहीं रहते..घर में हम किसी किरदार मे होते हैं, दफ़्तर में हम किसी दूसरे किरदार में
होते हैं, दोस्तों के साथ हम एक फक्कड़ अंदाज़ में होते हैं, किसी महिला मित्र के साथ हम थोड़े
संजीदे किरदार में होते हैं..कहने का मतलब बस इतना है कि अपनी ज़रूरत के अनुसार हम
अपने किरदार में होते हैं और उसे बख़ूबी निभाते भी हैं।
विशाल भारद्वाज ने भी अपनी नयी फ़िल्म
मटरू की बिजली का मंडोला में यही प्रयोग किया है, और अपने मुख्य किरदारों को दोहरे चरित्र में पेश किया है फिर चाहे
वो हैरी (पंकज कपूर) हो जो गुलाबो (देशी शराब) पी कर हरिया के किरदार में समा जाता
है या फिर वो हुकम सिंह मटरू (इमरान ख़ान) हो जो गाँव वालों की मदद करने की ख़ातिर
माओत्से तुंग बन कर आता है। मटरू और हैरी तो किसी कारणवश माओ और हरिया के किरदारों
को पहनते हैं मगर चौधरी देवी (शबाना आज़मी) और उनका बेटा बादल (आर्य बब्बर) अपने
स्वार्थ के लिये दोहरा चरित्र अपनाते हैं और अपने फ़ायदे की ख़ातिर किसी भी किरदार
में ढलने को तैयार रहते हैं।
फ़िल्म हरियाणा के एक गाँव मंडोला पर
आधारित है जहाँ गाँव का एक बहुत ही धनी व्यक्ति हैरी मंडोला (पंकज कपूर) गाँव
वालों की ज़मीन हड़प कर उस पर अपनी फ़ैक्ट्री डालना चाहता है और इस ‘नेक काज’ के लिये चौधरी देवी हैरी मंडोला को
उकसाती हैं क्योंकि हैरी की बेटी बिजली से उन्होंने अपने बेटे बादल की शादी पहले
ही तय कर रखी है। और बिजली से बादल की शादी करा वो हैरी की पूरी जायदाद पर कब्ज़ा
करना चाहती हैं। वहीं दूसरी तरफ़ किसानों को हैरी से बचाने की ख़ातिर मटरू जो कि
दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ की पढ़ाई करके आया है, माओत्से तुंग बन किसानों की मदद करता है। हैरी की एक ही बेटी है
बिजली जिसे वो बेहद प्यार करता है। पर सारा दोष तो उस गुलाबो (शराब) का है जिसे पी
कर हैरी बौराकर हरिया बन जाता है। पर आख़िर में हैरी शराब छोड़ चौधरी देवी और उसके
बेटे बादल की चाल समझ जाता है और गाँव वालों को उनकी ज़मीन वापस कर देता है।
लचर कहानी, बेदम स्क्रीनप्ले और गानों की ग़लत टाइमिंग फ़िल्म को बहुत ही
ज़्यादा बोरिंग बना देते हैं। ख़ासकर इंटरवल के बाद तो फ़िल्म बहुत धीमी हो जाती
है। फ़िल्म में अगर कुछ देखने लायक है तो वो है पंकज कपूर का दमदार अभिनय, विशाल भारद्वाज के लिखे डायलॉग और
फ़िल्म का संगीत। पंकज ने हैरी और हरिया के किरदारों को बखूबी अदा किया है।
स्क्रीन पर आने के बाद पंकज सभी किरदारों पर भारी पड़ते हैं और अपने अभिनय से
दर्शकों का दिल जीत लेते हैं। इमरान ख़ान ने भी हरियाणा के मस्त जाट का रोल निभाया
है।पंकज जितनी आसानी से हैरी और हरिया के किरदार में घुस जाते थे वह देखने योग्य
था, शायद इसीलिये लोग उनकी अदाकारी का लोहा मानते हैं। अनुष्का शर्मा
ने एक चुलबुली लड़की का अभिनय किया है। सह-कलाकार के तौर पर शबाना आज़मी को कई
सालों के बाद एक दमदार अभिनय करते देखा।
विशाल भारद्वाज जिन्होंने मक़बूल, ओमकारा, कमीने और इश्क़िया जैसी बेहतरीन फ़िल्में बनाई हैं उनसे ऐसी कमजोर
फ़िल्म की उम्मीद नहीं थी। उम्मीद है कि विशाल अगली बार ये ग़लतियाँ नहीं
दोहराएँगे।
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