जाने माने कवि असद ज़ैदी ने हाल ही में अपनी एक एक पुरानी महत्वाकांक्षी योजना को ठोस सूरत देते हुए जलसा नाम के प्रकाशन का पहला अंक निकाला है. इसे वे साहित्य और विचार का अनियतकालीन आयोजन कहते हैं. अंग्रेज़ी के विख्यात प्रकाशन ग्रान्टा की तर्ज़ पर इसे एक उपशीर्षक दिया गया है - अधूरी बातें. जाहिर है अगले अंकों में यह उपशीर्षक अलग अलग होंगे. बिना किसी विज्ञापन की मदद से छपी इस पत्रिका/पुस्तक की छपाई और समायोजन बेहतरीन है और देश के युवा और वरिष्ठ कवि-लेखकों की महत्वपूर्ण रचनाएं इसमें शामिल हैं. अगर आप अपनी लाइब्रेरी को थोड़ा और सम्पन्न बनाना चाहते हैं तो यक़ीनन जलसा आपके संग्रह में होनी चाहिये. जलसा को प्राप्त करने के लिए नीचे लिखे पते पर सम्पर्क किया जा सकता है: असद ज़ैदीबी- ९५७, पालम विहार, गुड़गांव १२२ ०१७, फोन : 09868126587,
ईमेल: jalsapatrika@gmail.com
जलसा से साभार देवी प्रसाद मिश्र की कविता
फ़्रेंच सिनेमा
(लगे हाथ नग्नता पर एक फ़ौरी विमर्श)
ख़ान मार्केट के पास जहां कब्रिस्तान है
वहां बस रुकती नहीं है - मैं चलती बस से
उतरा और मरते-मरते बचा : यह फ़्रेंच फ़िल्म का कोई
दृश्य होता जिनकी डीवीडी लेने मैं
करीब क़रीब हर हफ़्ते उसी तरफ़ जाया करता हूं
यह हिन्दी फ़िल्मों का कोई दृश्य शायद ही हो पाता क्योंकि
इन फ़िल्मों का नायक अमूमन कार में चलता है
और बिना आत्मा के शरीर में बना रहता है वह देश में भी
इसी तरह बहुत ग़ैरज़िम्मेदार तरीक़े से घूमता रहता है
वह विदेशियों की तरह टहलता है और सत्तर करोड़ की फ़िल्म में
हर दो मिनट में कपड़े बदलता है और अहमक पूरी फ़िल्म में
पेशाब नहीं करता है और अपने कपड़ों से नायिका के कपड़ों को इस तरह से
रगड़ता है कि जैसे वह संततियां नहीं विमल सूटिंग के थान पैदा करेगा
मतलब यह कि इन फ़िल्मों में बिना हल्ला मचाए निर्वस्त्र हुआ नहीं जाता
इन फ़िल्मों में सत्ता को नंगा नहीं किया जाता
जो कलाओं की दो बुनियादी वैधताएं हैं.
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