Note:

New Delhi Film Society is an e-society. We are not conducting any ground activity with this name. contact: filmashish@gmail.com


Thursday, July 19, 2012

हमारी फिल्म का हीरो कौन है?

पहले आजमगढ़ फिल्म फेस्टिवल में अरुंधति राय

आजमगढ के नेहरू हाल में पहला आजमगढ फिल्म फेस्टिवल 14 और 15 जुलाई को आयोजित किया गया। जनसंस्कृति मंच और आजमगढ फिल्म सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में प्रतिरोध का सिनेमा का यह 26 वां आयोजन था। पहले आजमगढ फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन प्रख्यात लेखिका एवं एकिटविस्ट अरुंधति राय ने किया।

 अरुंधति का वक्तव्य : 

 उद्घाटन वक्तव्य में अरुंधति ने कहा कि " वह आजमगढ में आकर खुश हैं। यह शहर कविता, गीत, संगीत का शहर है लेकिन मीडिया ने इसे तरह प्रचारित किया कि जैसे आजमगढ़ के खेतों में आतंकवादी उगते हैं और यहां के कारखानों में बम बनाए जाते हैं। इस मौके पर मै सिनेमा के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगी लेकिन इतना कहना चाहूंगी कि जैसे देश में जंग लडी जाती है, बांध बनाए जाते हैं, निजीकरण होता है तो वह भी गरीबों के नाम पर ही होता है। उसकी तरह हमारे फिल्म स्टार, गरीबों के कंधे पर सवाल होकर फिल्म स्टार बने हैं। आप देखिए पहले फिल्म के कैरेक्टर गरीब होते थे, झुग्गी झोपड़ी में रहते थे। अमिताभ बच्चन की फिल्म कुली याद करिए जिसमें वह इकबाल नाम के कुली हैं और टेड यूनियन से जुडे हैं। वह जमाना गया; आज हमारी फिल्म का हीरो कौन है? अम्बानी है । गुरू फिल्म को याद करें। तो आज की फिल्मों के ये हीरों हैं। आज कुछ फिल्में गरीबी पर बन जाती हैं जैसे स्लमडाग मिलेनियर लेकिन इसमें गरीबी को साइक्लोन, भूकम्प की तरह भगवान का बनाया हुआ बताया जाता है। इसमें कोई विलेन नहीं होता और इस तरह से हमारे इमैजिनेशन पर कब्जा कर बत़ाया जाता है कि एनजीओ और कार्पोरेट की मदद से गरीबी को खत्म किया जा सकता है।

 30 वर्ष पहले हमारे देश में तो ताले एक साथ खुले । एक बाबरी मस्जिद का और दूसरा बाजार का। इस मैनुफैक्चरिंग प्रासेस प्रक्रिया ने एक तरफ मुस्लिम आतंकवाद को पैदा किया तो दूसरे माओवाद को । आज ऐसी स्थिति बना दी गई है कि जो भी पार्टी सत्ता में आएगी वह राइट विंग ही होगी और वह हमारे देश को और ज्यादा पुलिस स्टेट बनाएंगे। इंडिया में जो इकनामिक प्रोग्रेस चल रहा है उसमें 30 करोड़ मिडिल क्लास आ गया है लेकिन इसके लिए 80 करोड़ लोगों को गरीबी में डूबो दिया गया है। ये 80 करोड़ लोग सिर्फ 20 रूपया रोज पर गुजारा करते हैं। ढाई लाख से अधिक किसानों ने खुदकुशी की।
दुनिया के सबसे ज्यादे गरीब लोग हमारे देश में रहते हैं। इनको देने के लिए पानी, अस्पताल, स्कूल नहीं है लेकिन हम अरबों रूपयों का इथियार खरीदते हैं ताकि हमें सुपर पावर कहा जाए। मुकेश अम्बानी की रिलायंस इंडस्टीज के पास दो लाख करोड़ की पूंजी है तो खुद उनकी व्यक्त्तिगत सम्पति एक लाख करोड रूपए; देश के 100 सबसे अमीर लोगों के पास देश की जीडीपी की एक चौथाई के बराबर सम्पत्ति है। अम्बानी ने अभी 27 टीवी चैनलों को खरीद लिया। अब ये चैनल कया दिखएंगे और बताएंगे कि छत्तीसगढ़ में क्या हो रहा है। जिसके पास एक लाख करोड़ है वह क्या नहीं खरीद सकते। सरकार, इलेक्शन , कोर्ट , मीडिया और सब कुछ। ये सरकार चलाते हैं, एजुकेशन, हेल्थ पालिसी बनाते हैं और अब हमारी जिंदगी भी चलाना चाहते हैं।

भ्रष्टाचार व्यापक आर्थिक असंतुलन से पैदा होता है। यह है भ्रष्टाचार रूपी बीमारी का असली कारण। छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड आदि प्रदेशों में 2004 में 100 से ज्यादा एमओयू किए गए। आदिवासियों को बंदूक देकर सलवा जुडूम बनाया गया और जंगल में बहुत बड़ी लड़ाई खड़ी की गयी है । 600 गांव जला दिए गए। तीन लाख लोगों को उनके घर से भगा दिया गया। जिसने विरोध किया उसे माओवादी कह कर मार डाला या जेल में डाल दिया। अभी छत्तीसगढ़ में 20 आदिवासियों को मार दिया। सोनी सोरी के साथ क्या हुआ, आप जानते हैं। आज देश का हालत ऐसा हो गया है। इस स्थिति में लेखकों, एक्टिविस्टों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है लेकिन सरकार और कार्पोरेट घराने लेखकों से कहते हैं कि दूर जाकर बच्चों की कहानी लिखो, दिमाग बंद कर चिल्लाओ। ऐसा करने के लिए लिटरेचर, डांस, म्यूजिक फेस्टिवल को स्पान्सर किया जाता है। अमेरिका में राकफेलर फाउंडेशन ने सीआईए बनायी। काउंसिल फार फारेन रिलेशन (सीएफआर) बनाया। वर्ल्ड बैंक बनाया। अब ये संस्थान माइक्रोफाइनेन्स से सबसे गरीब लोगों से पैसा खींच रहे हैं। माइक्रोफाइनेन्स के जाल में फंसकर एक साल में 200 लोगों को खुदकुशी करनी पड़ी; आदिवासी, मुसलमान, किसान, मजदूर सब इसकी मार की जद में हैं लेकिन हम एक होकर लड़ नहीं पा रहे क्योंकि इन्होंने हमें बांट रखा है। दलितो और आदिवसियों में। मुसलमानों को शिया और सुन्नी में। यह बंटवारा खड़ा करने के लिए ये फाउंडेशन पहचान की राजनीति, धार्मिक अध्ययन के नाम पर स्कालरशिप, फेलोशिप देते हैं। जो इस परा सवाल खड़ा करता है, इन झांसों में नहीं आता उसे नक्सली, माओवादी, आतंकवादी कह कर जेल में डाला जाता है, मार दिया जाता है।

आज देश में बड़ा प्रेशर बनाया जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाओ। गुजरात में मुसलमानों का संहार भूल जाओ। यह वही लोग हैं जो एक समय बाजार को खोलने के लिए मनमोहन सिंह को सिर पर बैठाए घूम रहे थे। आज उन्हें एक कट्टर व्यक्ति की जरूरत है जो इस सिलसिले को तेजी से चलाये."

 इस मौके पर चर्चित फिल्मकार संजय काक ने कहा कि दो दशक में तकनीक का लाभ उठाकर अलग किस्म का सिनेमा बन रहा है जिसने हमारे सामने एक नई दुनिया खोली है। बालीबुड का सिनेमा पैसे के बोझ से दबा है। वह न एक कदम आगे बढा सकता है न दाएं या बाएं देख सकता है। उसकी सारी कोशिश सिनेमा में लगाए गए पैसे को वापस लाने की होती है इसलिए वह जनता से नहीं जुड़ सकता। डाक्यूमेटरी सिनेमा अलग-अलग कहानी को कई तरीके से हमारे सामने ला रहा है। बड़ा पैसा, कल्चर को हमसे दूर की चीज बना देता है जबकि प्रतिरोध का सिनेमा यह बताता है कि वह लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा हुआ है। (साभार- संजय जोशी, संयोजक, प्रतिरोध का सिनेमा अभियान/मनोज सिंह, सचिव, जन संस्कृति मंच)

No comments:

Post a Comment