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Saturday, April 27, 2013

'हमारी याद आएगी...'




23 अप्रैल 2013 को अपने ज़माने की मशहूर गायिका शमशाद बेगम का इंतकाल हो गया। अब से करीब 50 बरस पहले उनके गानों की धूम हुआ करती थी। इनमें तमाम ऐसे गाने हैं जो आज भी रीमिक्स की कृपा से लोगों की ज़बान पर हैं, याददाश्त में हैं। इस ब्लॉग के माध्यम में उन्हे श्रद्धांजलि और उन तमाम लोगों के लिए दुआ, जो बीते दौर में सितारे की तरह चमके और बदलते दौर की नई चकाचौंध में गुमनाम हो गए। --आशीष

अजीब इत्तफ़ाक है..शमशाद बेगम के इंतकाल के ठीक एक रोज़ पहले पुराने अखबारों-कतरनों का एक बंडल छांट रहा था तो पता लगा था कि शमशाद बेगम मुंबई के पवई में अपनी बेटी के साथ आज गुमनामी में जिंदगी बिता रही हैं। ये राष्ट्रीय सहारा का साप्ताहिक परिशिष्ट 'हस्तक्षेप' था, 4 दिसंबर, 2007 का। शिशिर कृष्ण शर्मा (?) ने कभी तनहाइयों में यूं हमारी याद आएगी के नाम से एक बड़ा लेख लिखा था, जिसमें गुमनाम ज़िंदगी बिता रहे बीते ज़माने के नामचीन कलाकारों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई थी।

इंट्रो में लिखा गया था -  कुछ समय पहले तक कोई पुराना लहरीला नशीला गाना सुनते वक्त शुरू हुई बातचीत में शमशाद बेगम का ज़िक्र आ जाने पर कोई जानकार यह कहकर जिज्ञासा शांत कर देता था कि वे पाकिस्तान चली गईं, जहां उनकी मृत्यु भी हो गई। संयोगवश अभी दो साल पहले मुंबई के एक रिपोर्टर ने इसी शहर में उन्हे जीवित खोज लिया। यह हाल है हमारी फिल्मी दुनिया की उन नामीन हस्तियों का, जिन्होने सालोंसाल हमारे दिलों पर राज किया है। हमारे मन में उनकी तस्वीर ज्यों की त्यों  बनी रहतती है, लेकिन किसी दिन उनका स्टूडियो आना बंद हो जाता है और फिर वो गुमनामियों के घुप्प अंधेरे में खो जाते हैं। 

इसमें शमशाद बेगम पर एक पैराग्राफ लिखा था, जो इस प्रकार था- 

तीस के दशक में ऑल इंडिया रेडियो में पहचान बना चुकीं शमशाद बेगम ने लाहौर के पंचोली आर्ट्स की हिट फिल्म 'खजांची' (1941) से पार्श्व गायन के क्षेत्र में कदम रखा। करीब तीन दशकों तक वो इस क्षेत्र में सक्रिय रहीं और लगभग बारह सौ गीत गाने के बाद फिल्मोद्योग को अलविदा कह गईं। फिल्म 'किस्मत' (1968) का गीत 'कजरा मोहब्बतवाला' उनका गाया आखिरी गीत था, और अब वो अपनी बेटी-दामाद के साथ मुंबई के पॉश पवई इलाके में सुकून से जीवन बसर कर रही हैं। 

इसी लेख में एक ज़माने की मशहूर गायिका मुबारक बेगम की भी चर्चा थी, जो अब भी जिंदा हैं। 

'उधर मुबारक बेगम ने अपना पहला फिल्मी गीत फिल्म 'आइए' (1949) के लिए गाया था। फिल्म 'हमारी याद आएगी' के गीत 'कभी तनहाइयों में यूं'  ने उन्हे शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाया। साल 1980 में बनी फिल्म 'रामू तो दीवाना है' के लिए उन्होने आखिरी गीत 'सांवरिया तेरी याद में रो रो मरेंगे हम' रेकॉर्ड कराया और अब वो अपने टैक्सी ड्राइवर बेटे और अपाहिज बेटी के साथ मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में सरकारी कोटे से मिले फ्लैट में तंगहाली में रह रही हैं।'

शमशाद बेगम के इंतकाल के बाद मुबारक बेगम की बदहाली का जिक्र पढ़कर जब इंटरनेट चेक किया तो कई स्टोरीज़ मिल गईं, जिनमें आखिरी, मार्च 2013 में फाइल की गई थीं, इनमें एनडीटीवी का एक इंटरव्यू भी शामिल है। सो मीडिया ने रीविज़िट कर अपना दस्तूर निभा दिया है। रही बात इंडस्ट्री की, तो वहां का दस्तूर 'खबर' बनने पर ही ट्वीट करने का है।  

गुज़रे ज़माने के इन तमाम फनकारों को ऊपरवाला जितनी भी ज़िदगी बख्शे इज्ज़त के साथ सलामत रखे...यही दुआ है।