tag:blogger.com,1999:blog-8331635316295125922.post8591353994998168647..comments2024-02-21T21:52:18.417+05:30Comments on New Delhi Film Society: The ugliness of the Indian male : Udaanashishhttp://www.blogger.com/profile/03375412394400789148noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8331635316295125922.post-71001154161021434922010-07-28T15:42:09.176+05:302010-07-28T15:42:09.176+05:30फिल्म देखी नहीं है मगर उसके मूल मुद्दे जैसा की प्...फिल्म देखी नहीं है मगर उसके मूल मुद्दे जैसा की प्रचारित है से हट कर की गयी व्याख्या अच्छी लगी. " इस पुरुषसत्तात्मक समाज में एक पुरुष होना कैसा अनुभव है? और ख़ास तौर पर तब जब वक़्त के एक ख़ास पड़ाव पर आकर वो पुरुष महसूस करे कि इस निहायत ही एकतरफ़ा व्यवस्था के परिणाम उसे भी भीतर से खोखला कर रहे हैं, उसे भी इस असमानता की दीवार के उस तरफ़ होना चाहिए. इंसानी गुणों का लिंग के आधार पर बँटवारा करती इस व्यवस्था ने उससे भी बहुत सारे विकल्प छीन लिए हैं." समाज की असमानता का खामियाजा सिर्फ एक पक्ष ही नहीं भुगतता, दूसरा पक्ष उसके असर से बच नहीं सकता. " मर्द के DNA का आधा हिस्सा उसे एक स्त्री से मिलता है और हर मर्द के भीतर एक स्त्री होती है ". यहाँ स्त्री उस संवेदना और कोमलता का प्रतीक है जिसे दबा के रखना मर्दानगी की निशानी है. समीक्षा का ये नजरिया अच्छा लगा.Kanupriyahttps://www.blogger.com/profile/17228322730302050965noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8331635316295125922.post-54363775535772784032010-07-28T14:38:57.850+05:302010-07-28T14:38:57.850+05:30mihir jee
namaskar !
aap ki samiksha padhne ke baa...mihir jee<br />namaskar !<br />aap ki samiksha padhne ke baad lagta hai ki film dekhni chahiye . <br />thanksसुनील गज्जाणीhttps://www.blogger.com/profile/12512294322018610863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8331635316295125922.post-89352251639642482852010-07-27T22:34:08.889+05:302010-07-27T22:34:08.889+05:30जबर्दस्त और क्या..जबसे उड़ान देखी है तबसे दिमागी ज्...जबर्दस्त और क्या..जबसे उड़ान देखी है तबसे दिमागी ज्वार उतर नही पाया है..काफ़ी कुछ कहने बाँटने लायक है वहाँ..और जिस ईमानदार निर्ममता से आपने समाज की पीठ उधेड़ी है यहाँ..इस पोस्ट को संगहणीय बना देती है...ऐंगल उभर कर सामने आते हैं...समाज अपने तमाम विरोधाभासों मे उलझ कर दिध्रुवीय हो गया है..मगर विडम्बना है कि दोनो ध्रुवों पर हम ही हैं..अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.com