Sunday, July 12, 2020

गुरुदत्त और संजीव कुमार की याद...



- अमिताभ
गुरुदत्त का काम दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक तो वह दौर है जब गुरुदत्त कलकत्ता (अब कोलकाता ) में टेलीफोन ऑपरेटर से लेकर फिल्मों में कोरियोग्राफर का काम करने के बाद मुंबई में देव आनंद से टकराते हैं और दोनों युवा प्रतिभाओं की दोस्ती के साथ बाज़ी, जाल, बाज़,और सीआईडी जैसी हॉलीवुड स्टाइल की हलकी फुल्की शहरी थ्रिलर किस्म की मनोरंजक फिल्में पचास के दशक के हिंदी सिनेमा के इतिहास का उल्लेखनीय हिस्सा बनती हैं। इसमें आर-पार , मिस्टर एंड मिसेज़ 55 को भी जोड़ लें तो अभिनेता और निर्देशक के तौर पर उनके काम का पहला अध्याय तैयार हो जाता है। इन हल्की-फुल्की फिल्मों में गुरुदत्त की अभिनय और निर्देशकीय प्रतिभा का जो रंग मिलता है वह उनके बाद वाले बाकी काम से काफी अलग है जिसके लिए अब उनका नाम दुनिया भर के बेहतरीन फिल्मकारों में लिया जाता है।
यहाँ यह बताते चलें कि गुरुदत्त ने इसी दौर में वहीदा रहमान को दक्षिण भारत की एक तेलुगु फिल्म के ज़रिये खोजा और ‘सीआईडी’ से उनका हिंदी फिल्मों कि पारी शुरू हुई। आज यह जानकर अजीब लग सकता है हिंदी फिल्मों से पहले वहीदा रहमान ने तेलुगु फिल्मों में मुख्यतः आइटम नंबर किये थे। गुरुदत्त ऐसी ही एक फिल्म की कामयाबी की पार्टी में उनसे मिले थे। बाद में वहीदा रहमान गुरुदत्त की तीन सबसे मशहूर फिल्मों – प्यासा, काग़ज़ के फूल और साहब बीबी और ग़ुलाम का हिस्सा रहीं। वहीदा रहमान ने हमेशा गुरुदत्त को अपना मार्गदर्शक और उस्ताद माना। हालाँकि उनसे गुरुदत्त के लगाव की कहानी फ़िल्मी दुनिया की नाकाम मोहब्बतों की सबसे चर्चित दास्तानों में गिनी जाती हैं । गुरुदत्त के निजी जीवन के अवसाद को इस मोर्चे से भी जोड़ा जाता है।
 के़. आसिफ़ गुरुदत्त को लेकर एक फ़िल्म शुरू करनेवाले थे जिसका नाम था ‘लव एंड गॉड’। लेकिन लैला मजनूं की इस कहानी को गुरुदत्त की आत्महत्या के बाद संजीव कुमार के साथ बनाया गया। लेकिन बरसों तक लटकने के बाद जब ये फिल्म रिलीज़ हुई तो वो दिन देखने के लिए न के आसिफ थे और न संजीव कुमार।
यह भी एक इत्तिफ़ाक़ ही है कि गुरुदत्त और संजीव कुमार दोनों का जन्म एक ही तारीख़ को हुआ था-9 जुलाई।

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